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शं नो॒ द्यावा॑पृथि॒वी पू॒र्वहू॑तौ॒ शम॒न्तरि॑क्षं दृ॒शये॑ नो अस्तु। शं न॒ ओष॑धीर्व॒निनो॑ भवन्तु॒ शं नो॒ रज॑स॒स्पति॑रस्तु जि॒ष्णुः ॥५॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

śaṁ no dyāvāpṛthivī pūrvahūtau śam antarikṣaṁ dṛśaye no astu | śaṁ na oṣadhīr vanino bhavantu śaṁ no rajasas patir astu jiṣṇuḥ ||

पद पाठ

शम्। नः॒। द्यावा॑पृथि॒वी इति॑। पू॒र्वऽहू॑तौ। शम्। अ॒न्तरि॑क्षम्। दृ॒शये॑। नः॒। अ॒स्तु॒। शम्। नः॒। ओष॑धीः। व॒निनः॑। भ॒व॒न्तु॒। शम्। नः॒। रज॑सः। पतिः॑। अ॒स्तु॒। जि॒ष्णुः ॥५॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:35» मन्त्र:5 | अष्टक:5» अध्याय:3» वर्ग:28» मन्त्र:5 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:5


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर विद्वानों को क्या करना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे जगदीश्वर और शिक्षा देनेवाले ! आप की कृपा और उपदेश से (पूर्वहूतौ) जिसमें पिछलों की प्रशंसा विद्यमान वा जिससे पिछलों की प्रशंसा होती है उस में (द्यावापृथिवी) बिजुली और भूमि (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुख (दृशये) देखने को (अन्तरिक्षम्) भूमि और सूर्य्य के बीच का आकाश (नः) हम लोगों के लिये (शम्) सुखरूप (अस्तु) हो और (ओषधीः) ओषधि तथा (वनिनः) वन जिसमें विद्यमान वे वृक्ष (नः) हमारे लिये (शम्) सुखरूप (भवन्तु) होवें (रजसः) लोकों में उत्पन्न हुओं का (पतिः) स्वामी (जिष्णुः) जयशील (नः) हमारे लिये (शम्) सुखरूप (अस्तु) हो ॥५॥
भावार्थभाषाः - जो सब सृष्टिस्थ पदार्थों को सुख के लिये संयुक्त करने को योग्य होते हैं, वे ही उत्तम विद्वान् होते हैं ॥५॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्विद्वद्भिः किं कर्त्तव्यमित्याह ॥

अन्वय:

हे जगदीश्वरशिक्षकौ ! भवत्कृपोपदेशाभ्यां पूर्वहूतौ द्यावापृथिवी नश्शं दृशयेऽन्तरिक्षं नश्शमस्त्वोषधीर्वनिनो नश्शं भवन्तु रजसस्पतिर्जिष्णुर्नश्शमस्तु ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - (शम्) (नः) (द्यावापृथिवी) विद्युद्भूमी (पूर्वहूतौ) पूर्वेषां हूतिः प्रशंसा यस्मिन् येन वा तस्याम् (शम्) (अन्तरिक्षम्) भूमिसूर्ययोर्मध्यमाकाशम् (दृशये) दर्शनाय (नः) (अस्तु) (शम्) (नः) (ओषधीः) यवसोमलताद्याः (वनिनः) वनानि सन्ति येषु ते वृक्षाः (भवन्तु) (शम्) (नः) (रजसः) लोकजातस्य (पतिः) स्वामी (अस्तु) (जिष्णुः) जयशीलः ॥५॥
भावार्थभाषाः - ये सर्वान् सृष्टिस्थान् पदार्थान् सुखाय संयोक्तुमर्हन्ति त एवोत्तमा विद्वांसस्सन्ति ॥५॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे सृष्टीतील सर्व पदार्थांना चांगल्या प्रकारे संयुक्त करू शकतात तेच उत्तम विद्वान असतात. ॥ ५ ॥